गीता में कहा गया है
हिन्दूतव में भोजन एक यज्ञ मानने के पीछे अध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारणभारतीय संस्कृति व साहित्य में भोजन को अध्यात्म के रूप में स्वीकार किया गया है। हम जैसा भोजन करते हैं वैसे ही हमारे मन और विचार होंगे। भोजन की सामग्री और उसे बनाने वाले के आचार-विचार का प्रभाव उनके खाने वालों पर पडता है रसोई घर स्वास्थ्य का केंद्र बिंदु है। ये तथ्य अब वैज्ञानिक रूप से भी स्वीकार किये जाने लगे हैं। भोजन के इस महत्व के कारण अथर्ववेद, मनुस्मृति, महाभारत आदि ग्रंथों में भी भोजन के संबंध में निर्देश पाए जाते हैं।
भोजन के संबंध में महान संत तुकाराम कहते हैं, ‘तुका म्हणे चवी आले। जे का मिश्रिले विट्ठले’ अर्थात् जिसमें भगवान रूपी मिश्रण है, ऐसा जो भी अन्न हम लेते हैं, उसमें स्वाद आ जाता है।
भोजन के इस विषय पर भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने भोजन के संबंध में जो निर्देश दिए हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि केवल स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, भक्ति, योग, ध्यान और अध्यात्म के लिए भी भोजन एक महत्वपूर्ण विषय है।
गीता में कहा गया है :
1. -अन्न, फल, शाक, दूध, गुड सब भगवान की बनायी हुई हैं। मनुष्य इन्हें नहीं बना सकता। इनके निर्माण में ऊष्मा, प्रकाश, जल, वायु व पृथ्वी की आवश्यकता होती है। इन्हीं तत्वों से जीवन का निर्माण होता है। इन्हें भी बनाया नहीं जा सकता। अत: भगवान के द्वारा बनायी वस्तु बिना भोग लगाए खाना चोरी ही तो है।
2. भोजन एक यज्ञ का रूप है। भगवान को भोजन का भोग लगाकर प्रसाद के रूप में उसे प्राप्त करना भी यज्ञ का ही एक भाग है। भोजन जब भगवान के लिए तैयार होगा तो उसमें शुद्धता और स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाएगा। वह स्वाद के लिए कम, स्वास्थ्य के लिए अधिक लाभप्रद होगा। वह श्रेष्ठ भावना से युक्त होगा। वह धन की शुद्धि का भी प्रतीक होगा। केवल स्वाद के लिए बनाया गया भोजन पाप खाने जैसा है, वह शरीर के लिए हितकर नहीं हो सकता।
3. भोजन करने से पूर्व अन्य प्राणियों की भूख का भी विचार करना आवश्यक है। इसलिए भारतीय विचार पद्धति में गाय और कुत्ते जैसे मूक प्राणी के लिए रोटी बनाने का प्रावधान रखा गया है। भारतीय संस्कृति में जिस अतिथि को देवता कहा गया है वह हमारा रिश्तेदार, पहचानवाला नहीं वरन् भोजन के समय आया कोई भी अनजान व्यक्ति है। उसे आदरपूर्वक भोजन कराकर भेजना धर्म है। भोजन से पूर्व सावधानीपूर्वक देखना कर्तव्य है कि आसपास कोई भूखा तो नहीं है।
भोजन का योग में भी बड़ा महत्व बताया गया है। योग और ध्यान के लिए कम खाना और गम खाना दोनों आवश्यक हैं और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह आवश्यक है। इसलिए गीता के छठे अध्याय में इसे बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा गया है।
हे अर्जुन! जो अधिक खाता है या बहुत कम खाता है, जो अधिक सोता है अथवा पर्याप्त नहीं सोता, उसके योगी बनने की कोई संभावना नहीं है। (6/16)
भोजन कि अधिकता हमें तमोगुणी बनाकर आलसी बना देगी जो न केवल हमारी प्रसन्नता व आनंद में अवरोधक हैं बल्कि हमारी सफलता के मार्ग में भी बाधक है।
भोजन भी सात्विक, राजसी व तामसी होता है। भोजन के इन गुणों को स्पष्ट करते हुए गीता के सत्रहवें अध्याय में कहा गया है, ‘जो भोजन सात्विक व्यक्तियों को प्रिय होता है, वह आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल, स्वास्थ्य, सुख तथा तृप्ति प्रदान करने वाला होता है।
ऐसा भोजन रसमय, स्निग्ध, स्वास्थ्यप्रद तथा हृदय को भाने वाला है। अधिक तिक्त, खट्टा, नमकीन, गरम, चटपटा, शुष्क तथा जलन उत्पन्न करने वाला भोजन रजोगुणी व्यक्तियों को प्रिय होता है। ऐसा भोजन दु:ख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाला होता है। स्वादहीन, वियोजित एवं सड़ा, जूठा तथा अस्पृश्य वस्तुओं से युक्त भोजन उन लोगों को प्रिय होता है जो तामसी होते हैं।’
भोजन से पूर्व यह मंत्र बोलें
अन्नं ब्रह्म रसों विष्णु भोक्ता देवों महेश्वर
ॐपानाय स्वाहा !!
ॐअपानाय स्वाहा !!
ॐवयानाय स्वाहा !!
ॐउदानाय स्वाहा !!
ॐसमानाय स्वाहा !!
भोजन करने से पूर्व पालन करने के नियम
भोजन को अच्छी तरह से धोकर ही भोजन करना चाहिए। भोजन से पूर्व अंगों (2 हाथ, 2 पैर, मुख) को धो लेना चाहिये
*भोजन से पूर्व अन्नदेवता, अन्नपूर्णा माता की स्तुति करके उनका धन्यवाद देते हुए तथा 'सभी भूखों को भोजन प्राप्त हो', ईश्वर से ऐसी प्रार्थना करके भोजन करना चाहिए।
*भोजन बनाने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से, मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाएं और सबसे पहले 3 रोटियां (गाय, कुत्ते और कौवे हेतु) अलग निकालकर फिर अग्निदेव को भोग लगाकर ही घर वालों को खिलाएं। *भोजन किचन में बैठकर ही सभी के साथ करें। प्रयास यही रहना चाहिए की परिवार के सभी सदस्यों के साथ मिल बैठकर ही भोजन हो। नियम अनुसार अलग-अलग भोजन करने से परिवारिक सदस्यों में प्रेम और एकता कायम नहीं हो पाती।
2.भोजन समय:-
*प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है, क्योंकि पाचनक्रिया की जठराग्नि सूर्योदय से 2 घंटे बाद तक एवं सूर्यास्त से 2.30 घंटे पहले तक प्रबल रहती है। जो व्यक्ति सिर्फ एक समय भोजन करता है वह योगी और जो दो समय करता है वह भोगी कहा गया है।
*एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है 'सुबह का खाना स्वयं खाओ, दोपहर का खाना दूसरों को दो और रात का भोजन दुश्मन को दो।'
3.भोजन की दिशा:-
*भोजन पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुंह करके ही करना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है। पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है।
4.ऐसे में न करें भोजन:-
*शैया पर, हाथ पर रखकर, टूटे-फूटे बर्तनों में भोजन नहीं करना चाहिए।
*मल-मूत्र का वेग होने पर, कलह के माहौल में, अधिक शोर में, पीपल, वटवृक्ष के नीचे भोजन नहीं करना चाहिए।
*परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए।
*ईर्ष्या, भय, क्रोध, लोभ, रोग, दीनभाव, द्वेषभाव के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है।
*खड़े-खड़े, जूते पहनकर सिर ढंककर भोजन नहीं करना चाहिए।
5.ये भोजन न करें:-
*गरिष्ठ भोजन कभी न करें।
*बहुत तीखा या बहुत मीठा भोजन न करें।
*किसी के द्वारा छोड़ा हुआ भोजन न करें।
*आधा खाया हुआ फल, मिठाइयां आदि पुनः नहीं खाना चाहिए।
*खाना छोड़कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए।
*जो ढिंढोरा पीटकर खिला रहा हो, वहां कभी न खाएं।
*पशु या कुत्ते का छुआ, रजस्वला स्त्री का परोसा, श्राद्ध का निकाला, बासी, मुंह से फूंक मारकर ठंडा किया, बाल गिरा हुआ भोजन न करें।
*अनादरयुक्त, अवहेलनापूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करें।
*कंजूस का, राजा का, वेश्या के हाथ का, शराब बेचने वाले का दिया भोजन और ब्याज का धंधा करने वाले का भोजन कभी नहीं करना चाहिए।
6.भोजन करते वक्त क्या करें:-
*भोजन के समय मौन रहें। *रात्रि में भरपेट न खाएं।*बोलना जरूरी हो तो सिर्फ सकारात्मक बातें ही करें।*भोजन करते वक्त किसी भी प्रकार की समस्या पर चर्चा न करें।
*भोजन को बहुत चबा-चबाकर खाएं।*गृहस्थ को 32 ग्रास से ज्यादा न खाना चाहिए।
*सबसे पहले मीठा, फिर नमकीन, अंत में कड़वा खाना चाहिए।
*सबसे पहले रसदार, बीच में गरिष्ठ, अंत में द्रव्य पदार्थ ग्रहण करें।
*थोड़ा खाने वाले को आरोग्य, आयु, बल, सुख, सुंदर संतान और सौंदर्य प्राप्त होता है।
भोजन के पश्चात क्या न करें:-
भोजन के तुरंत बाद पानी या चाय नहीं पीना चाहिए। भोजन के पश्चात घुड़सवारी, दौड़ना, बैठना, शौच आदि नहीं करना चाहिए।
भोजन के पश्चात क्या करें:-
भोजन के पश्चात दिन में टहलना एवं रात में सौ कदम टहलकर बाईं करवट लेटने अथवा वज्रासन में बैठने से भोजन का पाचन अच्छा होता है। भोजन के एक घंटे पश्चात मीठा दूध एवं फल खाने से भोजन का पाचन अच्छा होता है।
क्या-क्या न खाएं:-
*रात्रि को दही, सत्तू, तिल एवं गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए।
*दूध के साथ नमक, दही, खट्टे पदार्थ, मछली, कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए। *शहद व घी का समान मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए।
*दूध-खीर के साथ खिचड़ी नहीं खाना चाहिए।
संस्कृति में भोजन संबंधी नियम कौन-से हैं?
भारतीय संस्कृति के अनुसार हाथ-मुँह धोकर आसन पर बैठकर भोजन ग्रहण करना चाहिए। भोजन प्रारंभ करते समय ईश्वर को धन्यवाद देकर नम्रतापूर्वक भोजन ग्रहण करना चाहिए एवं भोजन करते समय बातचीत नहीं करना चाहिए।
भोजन करने से पहले भगवान को भोग लगाने का क्यों है नियम?
अपने देखा होगा कि कई लोग भोजन करने से पहले भगवान का ध्यान करते हैं। कुछ लोग भगवान के नाम पर भोजन का कुछ अंश थाली से बाहर रखकर नैवैद्य रुप में अर्पित करते हैं। इसके पीछे धार्मिक कारण के साथ ही वैज्ञानिक कारण भी है।
सबसे पहले धार्मिक कारणों की बात करते हैं। गीता के तीसरे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि व्यक्ति बिना यज्ञ किए भोजन करता है वह चोरी का अन्न खाता है। इसका अर्थ हो जो व्यकि भगवान को अर्पित किए बिना भोजन करता है वह अन्न देने वाले भगवान से अन्न की चोरी करता है। ऐसे व्यक्ति को उसी प्रकार का दंड मिलता है जैसे किसी की वस्तु को चुराने वाले को सजा मिलती है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है 'अन्न विष्टा, जलं मूत्रं, यद् विष्णोर निवेदितम्। यानी भगवान को बिना भोग लगाया हुआ अन्न विष्टा के समान और जल मूत्र के तुल्य है। ऐसा भोजन करने से शरीर में विकार उत्पन्न होता है और विभिन्न प्रकार के रोग होते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो स्वस्थ रहने के लिए भोजन करते समय मन को शांत और निर्मल रखना चाहिए। अशांत मन से किया गया भोजन पचने में कठिन होता है। इससे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसलिए मन की शांति के लिए भोजन से पहले अन्न का कुछ भाग भगवान को अर्पित करके ईश्वर का ध्यान करने की सलाह वेद और पुराणों में दी गई है।
दाएं हाथ से ही क्यों करना चाहिए भोजन? जानिए इसका कारण
कहा जाता है कि भोजन हमेशा दाएं हाथ से ही ग्रहण करना चाहिए। इसका क्या कारण है? शास्त्रों के अनुसार, मनुष्य के दाएं और बाएं अंगों का विशेष महत्व है।
बाएं हाथ से भोजन ग्रहण करने का निषेध इसलिए है क्योंकि शिव ने शरीर के दाएं और बाएं भागों को अलग-अलग कार्यों के लिए निर्धारित किया है।
दायां भाग नारी का प्रतिनिधित्व करता है और बायां पुरुष का। हवन हमेशा दाएं हाथ से किया जाता है जिससे पवित्र अग्नि को सामग्री अर्पित की जाती है।
हमारे पेट में भी उसी अग्नि का सूक्ष्म रूप विराजमान है और भोजन भी यज्ञ का ही एक रूप है। जब हम भोजन ग्रहण करते हैं तो वह उस अग्नि को प्राप्त होता है जिससे हमें जीवन के लिए शक्ति मिलती है।
अतः यज्ञ सामग्री के समान ही भोजन को भी दाएं हाथ से ग्रहण करना चाहिए। इसके अलावा दायां भाग सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है और बायां चंद्रमा का।
चंद्रमा शरीर को शीतलता देता है और सूर्य शक्ति। दोनों का संतुलन शरीर को स्वस्थ रखता है। अतः दाएं हाथ से किया गया भोजन शरीर की अग्नि को संतुलित रखने में मदद करता है।
बाएं हाथ से भोजन करने पर शरीर में ग्रहों से संबंधित दोष उत्पन्न हो जाते हैं। अतः भोजन सदैव दाएं हाथ से करना चाहिए।
रात में भोजन के नुक़सान
रात में भोजन, पानी आदि ग्रहण करना जैन धर्म में निषेध हैं| इस निषेध के कई कारण हैं| कीटाणु और रोगाणु जिनको नग्न आंखों से देखना असंभव हैं, वे सूरज की रौशनी में गायब हो जाते हैं, वास्तव में नष्ट नहीं होते; वे छायादार स्थानों में शरण लेते हैं और सूर्यास्त के बाद; वे वातावरण में प्रवेश कर उसे व्याप्त करते हैं और फिर हमारे भोजन में मिल जाते हैं| इस तरह का भोजन उपभोग करने से कीटाणुओं और जीवाणुओ की हत्या होती हैं और बारी में हमारे बीमार स्वास्थ्य का कारण बनते हैं|
हमारी जैविक घड़ी, सूर्य के उदय-अस्त के अनुसार सेट की गयी है| जब सूरज हमारे बिलकुल ऊपर होता है, तब हमारी जठराग्नि उसकी चरम सीमा पर होती है| रात के समय में खाना ठीक से नहीं पचता क्योंकि पाचन प्रणाली रात में सूर्य के प्रकाश की अनुपस्थिति के कारण निष्क्रिय हो जाती है और हमें अपच की समस्या का सामना करना पड़ता है| इन घंटो के दौरान रस प्रक्रिया धीमी हो जाती हैं क्योंकि हम किसी भी प्रकार की शारीरिक गतिविधि में लिप्त नहीं होते जिससे पाचन में मदद मिलती हो| इसलिए रात के समय में ग्रहण किया हुआ भोजन पचा नहीं करता और वह शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है| यह अपचित खाना वजन में वृद्धि करता हैं और वसा के रूप में संग्रहीत होता है| यह सांस में गंध, दांतों की सड़न, कब्ज, घुटने के जोड़ों में दर्द और गले के कई रोग पैदा करता हैं|
भारतीय विज्ञान स्वास्थ्य के एक नियम अनुसार, व्यक्ति को भोजन करने के बाद कई बार थोड़ा-थोड़ा पानी पीना चाहिए| कुछ वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि व्यक्ति को सोने के कम से कम 3-4 घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए ताकि सोने से पूर्व खाना बराबर पच सके| हाँग-काँग देश में हाल ही में एक शोध से साबित हुआ है कि जो शाम को जल्दी खाना खाते हैं, वे दिल की बीमारियों से कम ग्रस्त होते हैं|
रात्रि भोजन से बचने के अन्य वैज्ञानिक कारण:
1. नींद चक्र में अस्थिरता:
अनुसंधान पाया गया है कि रात्रि में खाने से पाचन प्रक्रिया पर निद्रा चक्र का गंभीर प्रभाव होता है, जिसकी वजह से व्यक्ति को निद्रा के बीचमे कई बार जागना पड़ सकता हैं|
2. पेशाब वृद्धि और उत्सर्जन आवश्यकताए:
रात के दौरान पानी और भोजन ग्रहण करने से; शौचालय के उपयोग की संख्या में वृद्धि हो सकती है|
कुछ खाद्य पदार्थ और रात में खाने से उनके परिणाम:
1. उच्च वसावाले भोजन:
तेल, पनीर, फ्रेंच फ्राइज़, अतिरिक्त पनीर और चीज़ के साथ पिज्जा, चिकना भोजन, आदि उच्च वसावाले भोजन को रात में देर से ग्रहण करने से पाचन तंत्र में जमा हो जाते है|
2. मसालेदार खाना:
न केवल मसालेदार खाना रात में खाने पर सबसे ज्यादा हानिकारक होता है, बल्कि अपनी निद्रा चक्र में भी बाधा उत्पन करता हैं| इसके अलावा, एन्दोर्फिंस का आक्रमण होने पर सोना और भी कठिन हो जाता हैं| मसालेदार भोजन व्यक्ति को शारीरिक रूप से असहज महसूस करा सकता हैं| मसालेदार खाना अन्तरदाह, पेट और मौजूदा समस्याओं को और भी ख़राब करने का कारण बन सकता हैं|
3. कैफीन:
आप में से अधिकांश लोग शायद बेहतर जानते हैं की रात में कैफीनवाली कॉफी, चाय से बचना चाहिए, लेकिन बात यह हैं की, कई तरह के खानों में कैफीन पहले से ही शामिल होता हैं|
4. लाल मांस:
लाल मांस भोजन का एक प्रकार है जिससे पचने के लिए बहुत लंबा समय लगता हैं, क्योंकि प्रोटीन और वसा लाल मांस के बहुत सारे प्रकार में पाये जाते है| इसी कारण, लाल मांस का रात में उपभोग करने से एन्दोर्फिंस पैदा होते हैं जिससे सोने में और भी कठिनाई होती हैं|
5. अखरोट आदि:
आप सोच रहे होंगे कि क्या अखरोट स्वस्थ भोजन नहीं हैं? बेशक है – सेम में बहुत सारा रेशे वाला भाग हैं, जो निस्संदेह आपके शरीर के लिए बहुत अच्छा है| दुर्भाग्य से, सेम का रेशे वाला भाग रात में खाने के लिए बहुत ही हानिकारक हैं क्योंकि वे पचाने के कार्यक्रम को असहज कर देता हैं जिससे रात में पेट की समस्याऍ पैदा हो सकती हैं|
विभिन्न धार्मिक विचारों:
1. जो व्यक्ति शराब, मांस, पेय, सूर्यास्त के बाद खाता है और जमीन के नीचे उगाई सब्जियों का उपभोग करता है; उस व्यक्ति के किये गए तीर्थयात्रा, प्रार्थना और किसी भी प्रकार कि भक्ति बेकार हैं|
- महाभारत (रिशिश्वरभरत)
2. जो व्यक्ति बरसात के मौसम में सूर्यास्त के बाद खाना खाता हैं, उसके पाप हजारों “चंद्रायणतप” करने पर भी नहीं धुलतें|
- रिशिश्वरभरत (वैदिकदर्शन)
3. जो व्यक्ति सूर्यास्त के पहले खाते हैं और विशेष रूप से बरसात के मौसम में रात्रि भोजन का त्याग करते हैं; उस व्यक्ति के इस जीवन की और अगले जीवन की सारी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं|
- योगवशिष्ट पुर्वघश्लो 108
4. मारकंडपुराण में यह कहा गया है कि सूर्यास्त के बाद पानी पीना रक्त पीने के और भोजन करना मांस खाने के बराबर है|
- मारकंडऋषि
5. एक आदमी की इष्टतम दैनिक दिनचर्या के लिए रात में खाने से बचना चाहिए क्योंकि उस समय जठराग्नि, जो खाना पचाने का काम करती हैं, उस दौरान बहुत कमजोर होती हैं|
- चरकसंहिता और अष्टांग संग्रह
6. हिंदुओं के प्राचीन शास्त्रों में यह कहा गया है कि, “चत्वारि नरक्द्वाराणि प्रथमं रात्रिभोजनम्”, मतलब रात्रिभोजन नरक का पहला द्वार है|
यहां तक कि, मधुमक्खियों, गौरैयों, तोते, कबूतर और कई अन्य प्रकार के उत्तम पक्षी भी सूर्यास्त के बाद नहीं खाते|
दुनिया के सभी धर्मों में से, जैन धर्म खान-पान जैसी छोटी चीजों की जांच करने में भी अद्वितीय हैं| जैन धर्म समान रूप से मन, शरीर और आत्मा के विकास पर ध्यान केंद्रित करता है| भोजन के कुछ प्रभाव, दोनों अच्छे और बुरे, न केवल शरीर पर बल्कि मन पर भी असर करते हैं| आखिर जैसा आप खाते है वैसा आप सोचते हैं|
सूर्यास्त के बाद खाने का पाप:
कोई शिकारी छन्नु (९६) भव तक संलग्न शिकार करके जो पापराशी इकट्ठी करता है| उससे मात्र एक तालाब का शोषण करने का पाप बढ जाता है| सौ (१००) भव तक कोई मानव सरोवर सुकाने से जो पाप राशी इकट्ठी करता है| उससे ज्यादा एक वन को आग लगाने से पाप लगता है| एक सौ आठ (१०८) भव तक वन में आग लगाने से जो पाप राशी इकट्ठी होती है उससे ज्यादा पाप एक कुवाणिज्य करने से होता है| एक सौ चुम्मालिश (१४४) भव तक कुवाणिज्य करके जो पाप की राशी एकत्रित होती है उससे ज्यादा पाप एक कुकलंक लगाने में लगता है| एक सौ इक्कावन (१५१) भव तक असत्य कलंक लगाकर जो पाप के पहाड एकत्रित होते हैं उससे ज्यादा पाप एकबार परस्त्रीगमन करने के कारण लगता है| एक सौ निन्याणु (१९९) भव तक परस्त्रीगमन करके जो महाभयानक पापों की पोटली बांधकर आत्मा भारी होता है उससे भी ज्यादा पाप एक दिन के रात्री भोजन करने में लगता है|
यदि आप अब तक के जीवन की रात्रिभोजन के पाप की गणना करते हैं तो संचित कर्मो की राशि असंख्य हो जाती हैं|
यदि आप अपने पूरे जीवन के लिए सूर्यास्त से पहले खाना खाते हैं, तो आपको अपने आधे जीवन के उपवास का फल प्राप्त होता है|
रात्रिभोजन का त्याग, स्वर्ग के द्वार का आगमन हैं|
दैनिक जीवन में लाभ:
1. होटल में नो वेटिंग:
हम सबने अनुभव किया है कि शनिवार/रविवार की रात को होटल में खाने के लिए 10 मिनट से लेके 1-2 घंटे तक होटल के बाहर इंतजार करना पड़ता है| आप इंतज़ार करते करते थक जाते हैं जिसके बाद खाने का मन नहीं करता| और अगर आप के साथ बच्चे हो तो परीस्थिति बदतर हो जाती है| जो लोग सूर्यास्त से पहले खाना खाते हैं उन्हें होटल के बाहर प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि बहुत कुछ लोग होते हैं, जो सूर्यास्त से पहले खाना खाते हैं| इसके अलावा, होटल में भोजन, सफाई और स्वचाता की जो सेवा सूर्यास्त के बाद प्रदान होती हैं उससे कई गुना बेहतर सुविधा सूर्यास्त के पहले प्रदान होती हैं|
2. परिवार के लिए समय:
यदि सूर्यास्त से पहले परिवार में हर कोई भोजन कर लेता हो तो, घर के सभी काम पूरे हो जाते हैं और घर की महिलाओं को अपने बच्चों, परिवार और अन्य गतिविधियों के लिए पर्याप्त समय मिल पाता हैं |
सूर्यास्त से पहले नहीं खाने के और भी कई अन्य लाभ हैं| कई लोग इस दिशा में आगे भी बढ़ चुके है|
अगर आप उनमें से हो जो धर्म में विश्वास नहीं रखते, फिर भी रात में न खाने के बहुत सारे वैज्ञानिक कारण हैं जिससे आप चुस्त-दुरुस्त रह सकते हैं|
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